आज सारी दुनिया जिस मुल्क को,
जिस मुल्क की तरक़्क़ी को आदर और सम्मान के साथ देख रही है, वह भारत है.
लोग कहते हैं कि हिंदुस्तान में सब कुछ मिलता है, जी हां हमारे पास सब कुछ
है.
लेकिन हमें यह कहते हुए शर्म भी आती है और अफ़सोस भी होता है कि हमारे पास ईमानदारी नहीं है. हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भ्रष्टाचार कितनी गहराई तक उतर चुका है और किस तरह से बेईमानी एक राष्ट्रीय मजबूरी बनकर हमारी नसों में समा चुकी है इसका सही अंदाज़ा करने के लिए मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूं.
एक गांव के स्कूल में इंटरवल के दौरान एक कुल्फी बेचने वाला अपनी साइकिल पर आता था और बच्चों में कुल्फियां बेचा करता था. उसका रोज़गार और बच्चों की पसंद, दोनों एक दूसरे की ज़रूरत थे. इंटरवल में उसकी साइकिल के चारों तरफ़ भीड़ लग जाती. ऐसे में कुछ शरारती लोग उसकी आंख घूमते ही कुल्फ़ी के डिब्बे में हाथ डाल कर कुछ कुल्फियां ले उड़ते. कुल्फियां कम होने का शक तो उसे होता, लेकिन रंगे हाथ न पकड़ पाने की वजह से वह कुछ कर नहीं पाता था.
एक दिन उसने एक अजनबी हाथ को तब पकड़ लिया जब वह डिब्बे में ही था. वह लड़ पड़ा, तो इस लड़ाई का फ़ायदा उठाकर कुछ और हाथों ने सफ़ाई दिखा दी. यह देखकर कुल्फ़ीवाले ने अपना आपा खो दिया. फिर तो लूटने वालों के हौसले और बुलंद हो गये. जब क़ुल्फ़ीवाले को यह अहसास हुआ कि उसकी सारी कुल्फ़ियां लुट जाएंगी तो वह भी लूटने वालों में शामिल हो गया और अपने दोनों हाथों में जितनी भी क़ुल्फियां आ सकती थीं उन्हें लूट-लूट कर जल्दी जल्दी खाने लगा.
जी हां, हमारे यहां बेईमानी, भ्रष्टाचार और खुली लूट का यही आलम हैं. इससे पहले कि कोई दूसरा लूट ले. हम ख़ुद ही ख़ुद को लूट रहे हैं.
लेखक शम्स ताहिर खान
लेकिन हमें यह कहते हुए शर्म भी आती है और अफ़सोस भी होता है कि हमारे पास ईमानदारी नहीं है. हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भ्रष्टाचार कितनी गहराई तक उतर चुका है और किस तरह से बेईमानी एक राष्ट्रीय मजबूरी बनकर हमारी नसों में समा चुकी है इसका सही अंदाज़ा करने के लिए मैं आपको एक कहानी सुनाना चाहता हूं.
एक गांव के स्कूल में इंटरवल के दौरान एक कुल्फी बेचने वाला अपनी साइकिल पर आता था और बच्चों में कुल्फियां बेचा करता था. उसका रोज़गार और बच्चों की पसंद, दोनों एक दूसरे की ज़रूरत थे. इंटरवल में उसकी साइकिल के चारों तरफ़ भीड़ लग जाती. ऐसे में कुछ शरारती लोग उसकी आंख घूमते ही कुल्फ़ी के डिब्बे में हाथ डाल कर कुछ कुल्फियां ले उड़ते. कुल्फियां कम होने का शक तो उसे होता, लेकिन रंगे हाथ न पकड़ पाने की वजह से वह कुछ कर नहीं पाता था.
एक दिन उसने एक अजनबी हाथ को तब पकड़ लिया जब वह डिब्बे में ही था. वह लड़ पड़ा, तो इस लड़ाई का फ़ायदा उठाकर कुछ और हाथों ने सफ़ाई दिखा दी. यह देखकर कुल्फ़ीवाले ने अपना आपा खो दिया. फिर तो लूटने वालों के हौसले और बुलंद हो गये. जब क़ुल्फ़ीवाले को यह अहसास हुआ कि उसकी सारी कुल्फ़ियां लुट जाएंगी तो वह भी लूटने वालों में शामिल हो गया और अपने दोनों हाथों में जितनी भी क़ुल्फियां आ सकती थीं उन्हें लूट-लूट कर जल्दी जल्दी खाने लगा.
जी हां, हमारे यहां बेईमानी, भ्रष्टाचार और खुली लूट का यही आलम हैं. इससे पहले कि कोई दूसरा लूट ले. हम ख़ुद ही ख़ुद को लूट रहे हैं.
लेखक शम्स ताहिर खान
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