जैसलमेर यदुवंशी भाटी राजपूत राज्य का राज्य चिन्ह एवं उसका वास्तविक वर्णन


जैसलमेर का राजवंश राजपूतों की चंद्रवंश की यदुवंशी/पौराणिक यादव खांप की भाटी शाखा में है और अपने पूर्वज राजा भाटी के नाम से "भाटी "या भाटी यादव"कहलाता है।इनके मूल पुरुष पंजाब से चल कर वि0 सं 0 800 के करीब राजपूताने में अधिकार किया था।इन भाटियों ने समय -समय पर उत्तर से भारत पर आक्रमण करने वालों का सब से प्रथम मुकाबला किया था।इसी से इनको "उत्तर भड़ किवाड़ भाटी "अर्थात उत्तर भारत के द्वार रक्षक भाटी "कहते है।यहां के नरेश पंजाब से राजपूताने में आने के कारण अपने को "पश्चिम के बादशाह "भी कहते है।यादव वंश महाराजा ययाति के पुत्र यदु के नाम से प्रसिद्ध हुआ है।इन यादवों का शासन भारतवर्ष के एक बड़े भाग पर रहा है।भगवान् श्री कृष्ण के बाद उनके कुछ वंशधर हिन्दुकुश के उत्तर में व् सिंधु नदी के दक्षिण भाग और पंजाब में बस गए थेऔर वह स्थान"यदु की डाँग" कहलाया ।यदु की डाँग से जबुलिस्तान ,गजनी ,सम्बलपुर होते हुऐ सिंध के रेगिस्तान में आये और वहां से लंघा ,जामडा और मोहिल कौमो को निकाल कर तनौट ,देरावल ,लोद्र्वा और जैसलमेर को अपनी राजधानी बनाई ।जैसलमेर के इस राजवंश का इतिहास यथाक्रम महाराजा रज से प्रारम्भ होता है जो वि0 सं0 600 के आस -पास हुआ था।इनका पुत्र गज था और उसका राज्य पेशावर (पुरुषपुर )के आस -पास था।इसका नाम गजपति भी था।इसने गजनी या गजनीपुर नाम का नगर बसाया था।इसी को अफगानिस्तान का गजनी शहर कहते है।गंधार देश जिसको अब कंधार कहते है,प्राचीन समय में चंद्रवंशी क्षत्रियों के अधिकार में था और चीनी यात्री हुएनसांग सातवीं शताव्दी में उस तरफ से होकर ही भारत में आया था।उसने उस समय हिरात से कंधार तक हिन्दू राजा व् प्रजा का होना लिखा है।खुराशान् के बादशाह ने महाराज गज पर चढाई की इस युद्ध में खुराशानी बादशाह और महाराज गजदोनों हीकाम आये और राजधानी गजनी पर मलेच्छों (मुसलमानों )का अधिकार होगया ।जब गाजीपुर मुगलों के हाथ चला गया तोमहाराज गज के पुत्र शालिवाहन पंजाब के दक्षिण की ओर अपने साथिओं के साथ बढे और वर्तमान लाहोर के पास शालवाहनपुर नगर बसाया।यह नगर वही है जिसे अब शियालकोट कहते है।धीरे -धीरे ये पंजाब के स्वामी होगये।शालिवाहन के बाद उसका बड़ा पुत्र बलंद शालभानपुर(शियालकोट )की गद्दी पर बैठा।इसके समय में तुर्कों का जोर बहुत बढ़ गया थाऔर उन्होंने गजनी पुर बापिस ले लिया।इससे बलंद के पुत्रों के अधिकार मेंकेवल सिंधु नदी का पश्चिमी भाग ही रहा।बलन्द के 6 पुत्रों में ज्येष्ठ भाटी थे।ये बड़े प्रतापी योद्धा थे।इन्होंने कई लड़ाईयां लड़ीं थी।महाराज भाटी जी के समय तक इस वंश का नाम "यादव वंश "ही था।परन्तु इस प्रतापी राजा के पीछे उनके वंशज "भाटी"नाम से प्रसिद्ध हुए ।इन्होंने अपने नाम से भट्टिक संवत् भी चलाया था जो पंजाब में अर्से तक चलता रहा।महाराज भाटी जी का समय वि0 सं0 680 (ई0 सन् 623 )के करीब होता है जब वे गद्दी नशीन हुए होंगे।महाराज भाटी जी ने अपने नाम पर पंजाब में भटनेर नाम का प्रसिद्ध गढ़ व् नगर बसाया जो बहुत समय तक भाटियों के अधिकार में रहा और फिर भाटी मुसलमानों के हाथ लगा।बाद में सन् 1805में मुसलमान जाब्तखां भट्टी से वह बीकानेर के राठौड़ों के राज्य में सम्मिलित हो गया।अब उसका नाम "हनुमानगढ़ "है।
इस भाटी राजवंश का इतिहास डावांडोल रहा है।इन्होंने भिन्न -भिन्न समयों में भिन्न -भिन्न स्थानों पर अपना प्रभुत्व जमाया था।ये अपनी 9 राजधानीयो में से जैसलमेर को अंतिम राजधानी बतलाते है और 12जुलाई सन् 1155 को इसका स्थापित होना मानते है।इस विषय का एक पद्य भी है
मथुरा काशी प्राग बड़,गजनी अरु भटनेर।
दिगम् दिरावल लोद्रवो,नमो जैसलमेर।।
जैसलमेर को महारावल जैसलदेव ने अपनीराजधानी बनाया था ।वे सिर्फ 12 वर्ष जीवित रहे और फिर संसार से चल बसे ।इसके बाद जैसलमेर के राज्य में काफी उतार -चढाव आये लेकिन अंत तक भाटी राजपुतसंघर्ष रत रहे और पुनः जैसलमेर पर उनका ही आधपट्टिय रहा।संक्षिप्त में भाटियों का वंश -चंद्र ,कुल -यदु ,कुलदेवता -लक्ष्मीनाथ ,कुलदेवी -सांगियाजी ,देवी -भाद्रयाजी ,इष्ट देव -श्री कृष्ण ,गोत्र -अत्रि ,
दुर्ग-जैसलमेर ,पूगल ,बीकमपुर ,बरसलपुर ,मारोठ ,केहरोड ,देरावर ,बींझनोत ,लुद्रवा ,भटनेर ,मुमनबाहन ,दुनियापुर ,भटिंडा ।
भाटी राजपूतों के ठिकाने
राजस्थान --बाड़मेर ,जोधपुर ,बीकानेर ,चित्तौड़ ,जालोर' गंगानगर rajsthan के लगभग सभी जिलो में इसके अलावा गुजरात और पाकिस्तान पाये जाते है।'
उत्तरप्रदेश --मेरठ ,गाजीयाबाद ,बुलहंशाहर ,एटा ,मैनपुरी ,इटावा ,गोंडा ,बरेली ,मथुरा जिलो में पाये जाते है।
बिहार --मुंगेर तथा भागलपुर जिलों में।
हिमाचल प्रदेश --जुब्बल ,बालसन ,थियोगर ,कलसी में भाटी राजपूत पाये जाते है।
इसके अलावा कुछ क्षेत्र हरियाणा और पंजाब जिलों में भी भटिंडा ,नाभा ,जींद ,अंबाला ,सिरमौर तक की यह पेटी भाटी वंश की है।जहाँ पर कुछ अब वे दूसरे वंशों में बदल गये
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