मैं, भारत का एक युवा नागरिक अपने देश के समछ और मुख्यतः देश के प्रधान-मंत्री के समछ एक सवाल उठाना चाहता हूँ और उसकी समुचित उत्तर की अपेचा करता हूँ. मैं आज तक जाति-वर्ग आधारित आरक्षण निति की सम्बधता को समझ नहीं पाया हूँ. आदरणीय डॉ मन मोहन सिंह जी, मैंने आपके द्वारा वित्-मंत्री के रूप में देश की अर्थ-व्यवस्था में लाये गए क्रन्तिकारी परिवर्तन के बारे में काफी सुना और पढ़ा है. मैं और इस आवाम का हरेक जागरुक नागरिक यही चाहता है की आप देश की आरक्षण निति को भी तर्क-सांगत बनाये और अपनी सक्षम नेतृत्व में देश को सही दशा और दिशा प्रदान करें.
आज की बढती जातिवाद और धार्मिक अस्थिरता का मुख्य कारण हमारी आरक्षण निति है. मेरा यह मानना है कि अगर आजादी के ६४ साल बाद भी अगर हम जाति, धर्मं और भाषा के जंजीरों में बंधे हुए हैं तो इसका पूरा श्रेय हमारी आरक्षण निति को जाता है.
आज के आधुनिक युग में जाति या वर्ग आरक्षण का मापदंड नहीं हो सकता. आर्थिक स्थिति आरक्षण का बेहतर पैमाना हो सकता है. यह किसी मजाक से कम नहीं है की हमने पिछले ६४ सालों में बहुत तरक्की की, मगर इस तरफ न तो हम नागरिकों का ध्यान गया और नेता जान कर भी अनजान बने बैठे रहे. कोई भी देश अपनी प्रतिभा और संसाधनों के साथ खिलवार नहीं कर सकता है.
यह विषय राजनैतिक द्रृष्टि से वोट का साधन मात्र माना जाता रहा है,पर अब वो वक़्त आ गया है जब हमें अपना नजरिया बदलना होगा . जब राजस्थान में गुज्जरों ने खुद के आरक्षण के मांग को लाकर धरना एवं प्रदर्शन किया और हिंसा का भी सहारा लिया,यह आने वाले प्रलय का एक संकेत मात्र था . आज कोई भी वर्ग जो आरक्षण की छाया से परे है, वो खुद को असुरक्षित महसूस करता है. ऐसे में हिंसा का नंगा नाच जो देखने को मिला, उसे एक शुरुआत मात्र माना जाये. अगर स्थिति नहीं बदली तो देश ऐसे ही कई सारे हिंसक आंदोलनों का साक्षी होगा.
उम्मेद सिंह शेखावत करीरी
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