सिद्हसंत श्री गणेशदास जी महाराज (गुदड़ी वाले) मेडतिया राठोड़ राजपूत संत है| .....इनका जन्म मारवाड़ देश में सिंजगुरू (सिन्द्कर) गाँव में हुआ| ये दादू पंथी संत है | ये आजन्म ब्रम्चारी, बालताप्स्वी, अखंड, त्यागमूर्ति, सत्य स्पष्ट्निर्भिक्वक्ता, परम कारुणिक, ब्रम्निष्ठ थे | गुरु ( सनमानदास जी ) का दिया नाम "गणेशदास" था .|......
.एक लंगोट एक रजाई और एक लकड़ी के अतिरिक्त जिन्होंने कभी स्वप्न में किसी पदार्थ का ग्रहण नहीं किया | केवल अंग के साथ रजाई धारण रखते थे इसी से "गुदड़ी वाले बाबाजी" नाम से प्रसिद्ध थे| इनका स्थान जयपुर में आमेर महल के सामने वाली पहाड़ी पर स्थित है |....... ये बहुत ही सिद्ध संत थे एक बार इनको पसली का दर्द हो गया बहुत उपचार करने पर भी दर्द ठीक नहीं हुआ तो इन्होने छाछ और राबड़ी मनवा कर पी ली उसके पीते ही पसली का दर्द मिट गया |.............. इसी ही प्रकार एक समय एक साधू के प्रचंड रोग से बहुत तेज बुखार चढ़ रहा था , गणेशदास जी ने उन्हें दही और मूली खिला दिए ...उसके खाते ही वह रोग से मुक्त होकर चंगा हो गया ....ऐसे इनके चमत्कार के अनेको उदारण है.... विक्रम संवत १९९० को योग धारणा के साथ अपने मस्तक , प्रिय शिष्य शंकरदास जी की गोद में रखकर अंतिम श्वास तोड़कर निर्वाण पद प्राप्त किया | इनकी अंतिम इच्छा थी की मेरे मृत शरीर को भराने पर्वत पर रख आना ..(इसी पर्वत पर दादूजी का शव नारायणे से लाकर रखा गया था )..

कबीर मरना तहा भला जहाँ न अपना कोय |
मट्टी खाय जिनावारा सहज मोहोछो होय ||
0 comments :
Post a Comment
कृपया कॉमेंट करें