मैं वह अभागन हुँ...

मैं वह अभागन हुँ...












मैं वह अभागन हुँ...
नाम की केवल
गंगामाता हुँ...
कूड़ा-कचरा मल-मूत्र
जो मन में आए...
वो मुझमें डाला जाता हैं...
इंसान नहीं....ये मुझें
इंसान के रूप में...
शैतान नज़र आता हैं...
मैं वह अभागन हुँ...
जो गंगामैया कहलाती हुँ...
क्या कसूर मेरा...???
जो मेरे तन को अपवित्र कर दिया...
जीते जी मुझे मरने पर छोड़ दिया...
इन शैतानों ने...
मेरा तिरस्कार कर दिया...
यहाँ आज में क्यों हुँ...
आज यह सोचकर...
मन ही मन खूद को कौसती हुँ...
फिर...भी मन में एक
उम्मींद की आस लगाएँ बैठी हुँ...
कोई तो यहाँ इंसान होगा...
सब रावण नहीं कोई...तो
मर्यादा-पुरूषोतम राम होगा...
आज प्रत्यक्ष रूप सें सामने हुँ...
मगर..सभी धतृराष्ट्र...कर बैठै हैं...
खेद है मुझे... उनको मैं दिख नहीं रही हुँ...
बहन सरस्वती की तरह
कल विलुप्त हो जाऊगीं...
करोडो़ प्रयास करोगें...
मगर...मिल नही पाऊगीं...
करोड़ो रूपये लगाकर
मुझें ढूढ़ने का प्रयास करोगें...
सरस्वती नहीं मिली...तो
मैं क्या खाक मिल पाऊगीं...
मन भर गया अब
इन पृथ्वींवासियों सें...
संभल जा ऐ इंसान...
तड़प तड़प कर मर जाऐगा...
नहीं मिलुगीं,नहीं मिलुगीं...
~ (आपकी गंगामाता)
जय गंगामैया...
जय हिन्द,जय भारत



कुँवर लहरसिंह देवड़ा
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About सेवन्त्रीसिंह देवड़ा

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