!! क्षात्रधर्म !!


!! क्षात्रधर्म !! 
"क्षति से जो समाज की रक्षा करता है ; वही क्षत्रिय कहलाता है..!" 
वैदिक सनातन धर्मं में क्षत्रिय धर्म का एक महत्वपूर्ण स्थान है! प्रजापति ब्रह्मा ने सृष्टि की उत्पत्ति करते समय क्षत्रिय को अपने भुजाओं से उत्पन्न किया था ! महर्षि याश्क ने अपने ग्रन्थ 'निरुक्त' में क्षत्रिय शब्द का अच्छा विवेचन किया है! वे कहते है , "क्षतात त्राय ते इति क्षत्रिय: " अर्थात क्षति (याने पाप, अधर्म, कष्ट, शत्रु आदि सर्व प्रकार की क्षति) से रक्षा करना सच्चे क्षत्रिय का परम कर्त्तव्य होता है! महात्मा मनु ने भी प्रजाओं का पालन ही क्षत्रियों का श्रेष्ठ धर्मं बतलाया है ! (आधार: मनुस्मृति: अध्याय ७, श्लोक क्रमांक १४४) 
क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म के बारे में भगवन श्री कृष्ण ने श्रीमद भगवद्गीता में कहा है; 
" शौर्य तेजो ध्रुतिर्दाक्ष युद्धे चाप्य पलायनम !
दान्मिश्वर भावश्च क्षात्र कर्म स्वभावजम !!" (गीता अध्याय १८, श्लोक ४३)
शूरवीरता ,तेज, धैर्य, चतुरता और युद्ध में न भागने का स्वभाव एवं दान और स्वामिभाव ये सब क्षत्रिय के स्वाभाविक कर्म है !
क्षत्रिय धर्मे के बारे में विस्तृत विवरण कई ग्रंथों में मिलता है जिसका जिक्र हम यथावकाश करते रहेंगे !
राजस्थान के रजवट साहित्य में भी क्षत्रिय धर्म का सुन्दर चित्रण मिलता है!
"सीधो रजवट परखनो, ऐ रजवट अहनान!
प्राण जठेई रजवट नहीं; रजवट जठे न प्राण !!"
इस सोरठे का अर्थ है की क्षत्रिय सुख,भोग की लालसा नहीं रखता है; वह तो संघर्ष का अधिकारी होता है! जो सुख या भोग के प्रति शरण जाते है ..वे क्षत्रिय नहीं होते है! 
क्षत्रिय केवल जाती नहीं, केवल धर्मं नहीं बल्कि एक व्रत है; जिसे जीवन भर हमें समर्पित होना चाहिए! समर्पण के भाव से जीना चाहिए! क्षत्रिय की आँख एक-दुसरे में फर्क नहीं करती है! पुराण कालीन क्षत्रिय सभी जनता को एक ही दृष्टी से देखते थे! क्षत्रिय हमेशा न्याय के पक्ष में रहता है! आज भी हमें वही गौरवशाली आचरण का अवलंब करना होगा! क्षत्रियों का धर्मं कोई संकीर्ण विचारधारा वाला या आचरण वाला धर्म नहीं था; वह विशाल मानवता की दृष्टी रखने वाला धर्मं था! भौतिक और अध्यात्मिक जीवन में उच्च कोटि की नैतिकता वे धारण करते थे! मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु "रघुकुल रित सदा चली आयी; प्राण जाई पर वचन ना जाई!" परंपरा का यह दाखिला यहाँ प्रस्तुत करते समय हमें गर्व महसूस होता है! अनगिनत उदाहरणों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है! उपर्निर्दिष्ट विचार केवल मध्य युग के क्षत्रियों के बारे में लागु नहीं पड़ते है बल्कि आज के युग में भी अनुकरणीय है! आज युद्ध का जमाना नहीं रहा है! समाज या देश की रक्षा के लिए वर्तमान शासन ने सुसंगठित सेना रखी है! आज हमें रण पर जाने की जरुरत नहीं है; आज शांति का समय है....गणतंत्र राज्य व्यवस्था के हम नागरिक है! महान क्षात्र धर्मं ने इस महान सभ्यता और संस्कृति का रक्षण सदियों तक किया है! संवर्धन किया है! आज समाज की रक्षा करने के लिए तलवार पकड़ कर रण में जाने की जरुरत नहीं है! समय बदल गया....राजपाट और तख़्त बदल गए.....कर्त्तव्य की सीमा बदल गयी....लेकिन फिरभी हमारे संस्कार....हमारे कर्म तो शास्वत है ......सनातन है! आज शांति है ;तो सेवा ही हमारा धर्म होगा ! सेवा ही हमारा कर्म होगा! संस्कृति,मानवता,देश,धर्मं और गरीब की सेवा ही हमारा कर्म होना चाहिए! क्षत्रिय ने हमेशा असहाय को सहायता की है; इसलिए क्षात्र धर्मं मानव धर्मं का रक्षक कहा गया है! ऐहिक जीवन में समष्टिवाद तथा व्यक्तिवाद होते है! क्षत्रिय हमेशा समष्टिवादी रहे है! व्यक्तिवादी होना यानी अपना अंत करना होता है! हम विचारों की; सत्कर्मों की पूजा करते है.....केवल अंधी आँखों से किसी व्यक्ति मात्र की नहीं! जिसमे ईश्वर नहीं होता है....वह नश्वर बतलाया जाता है! और क्षत्रिय कभी नश्वर के पुजारी नहीं हो सकते! "सर्वजन- हिताय: सर्व- जन सुखाय" ...ऐसी सर्वव्यापी महान दृष्टी के तारणहार क्षत्रिय जाती रही है!समाज...संस्कार....सुव्यवस्था की रक्षा एवं स्थापना हेतु क्षत्रियोंकी उत्पत्ति हुई है ...ऐसा पुराण में बताया जाता है! या तो समाज के एक वर्ग ने समाज रक्षा का प्रण किया; वे क्षत्रिय माने जाने लगे! इसी वर्ग ने सदियों तक इस भूमि पर होने वाले आक्रमनोंका सामना किया...त्याग और बलिदानकी कई गाथाये यहाँ प्रकट हुई! क्षत्रिय वीर एवं वीरांगनाओं के त्याग की ऐसी मिसाल विश्व के इतिहास में शायद ही कई हो...! हमें हमारे गौरवशाली अतीत पर गर्व होना चाहिए...आज के वर्तमान में भी बीती सदी की कहानिया हमें नई दिशाए...नई प्रेरणाए देती है! एक अच्छा...तेजस्वी...ताकदवर...स्वाभिमानी राष्ट्र निर्माण के लिए सुसंस्कृत नागरिकों की आवश्यकता होती है ! क्षत्रिय इतिहास ऐसे देशभक्त नागरिक तैयार करने में मदतगार साबित हो सकता है!
इस कड़ी में हम समय समय पर यथावश्यक उपलब्धिया जरुर करवाएंगे ! जय क्षात्र धर्मं ! 
------जयपालसिंह विक्रमसिंह गिरासे (सिसोदिया) 
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