अंतिम सांसे

राष्ट्र के दिल ओ दिमाग में लहू बनकर दौड़ने वाला राजपूत वेंटिलेटर पर अंतिम सांसे लेने की तरफ अग्रसर ..........






मुझे आज 15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि का विस्मरण हो आया जब वतन "आजादी" की फिजाओं में खुलकर साँस लेने के लिए फेफड़े फुला रहा था, तब वतन परस्ती और हिंदुत्व को विश्व में बचाने के लिए एवं वतन की एक एक इंच जमीन के लिए अपना शीष और सर्वस्व न्योछावर कर राष्ट्र के दिल ओ दिमाग में लहू बनकर दौड़ने वाला राजपूत वेंटिलेटर पर अंतिम सांसे लेने की तरफ अग्रसर था ! इन छियासठ वर्षो में राजपूत समाज को जमींदौज करने वाले सारे फार्मूले सरकारों ने हम पर लगा डाले .... पर हम तब भी नही मिट पाए .........!

मित्रो लाला लाजपत राय जब लाठी चार्ज में घायल हुए थे, तो उन्होंने सिंह गर्जना की थी की मेरे शरीर पर पड़ी एक एक लाठी अंग्रेजी हुकूमत के ताबूत में आखिरी कील साबित होगी ! और इसे सरदार भगत सिंह ने अपने प्राणों की आहुति देकर वैश्विक सत्य के रूप में चरितार्थ करके दिखा दिया, पर विडम्बना देखिये समाज बंधुओं आपकी कौम की अस्मत को मिट्टी में मिला, हर कहीं गिरवी रख देने वाले लोगो को आगे बढाने वालो को एक करारा थप्पड़ मारने का साहस हममे नही, तो हम कहाँ सर काटने और कटाने जैसी थोथी लफ्फाजी (गाल बजाने वाली गन्दी मानसिकता) में अपने फर्जी स्वाभिमान को शांत करने वाला बकवास अति आत्म विश्वास लेकर घूम रहे है, जो न हमारी कौम का भला कर सकता है .....और न ही आपके उज्जवल भविष्य की गारंटी दे सकता है !

क्या आपको नहीं लगता दुसरो को प्रेरणा देने वाली राजपूत सभ्यता और संस्कृति आज खुद विकृत होने की कगार पर है, क्योंकि संस्क्रति बचाने वाला हमारा एक संघटन आजकल समाज हित को छोड़ कर एक राजनैतिक दल की पग चम्पी में मशगुल है।  आप दलों के दलदल में मशगुल है, वहीं आपको दलदल में धंसाने का ठेका एक सामाजिक संगठन उठा, बिक चूका ! कौम के वोटो को थोक के भाव बेंच कर !!!!

जानते हो इस संघ की गतिविधियों ने हमें राजनीती में अछूत और शुद्र बनाने जैसा दोयम दर्जे का दुस्साहस दिखाया है । राजपूतो को राजनीति में दफ़्न करने का ठेका इन लोगो को कितने दामो में मिला है ? ये वो जाने या क्षत्रिय कुल का कल्याण करने वाली माँ भगवती ? मित्रो हमें समझना होगा राजनीती जातिगत प्रभाव में है और आज के दौर में हर जाति संघठित होकर राजनैतिक विषयों की प्रक्रिया को प्रभावित करती है ! इसके सबसे बड़े उदाहरण के रूप में "जाट आरक्षण" के नाम पर भाजपा द्वारा राजपूत समाज के गाल करारा तमाचा जड़ा गया था। जिसकी छाप हमारी आने वाली पीढ़ियों के गाल पर स्पष्ट नजर आएगी कई पीढियों तक। सत्य जो दृष्टिगत है वही यहाँ वर्णित है ! क्या "जाट आरक्षण" हमारे लिए अचानक घटित होने वाली घटना मात्र थी, या इस कौम के मनोबल और राजनैतिक पतन के लिए घड़ा गया गन्दा सुनियोजित षड़यंत्र ?? क्या एक विशेष जाती हमें अपना धुर्व शत्रु नहीं मानती ? क्या हमने भी इस जाती को वैचारिक रूप से अपना कट्टर दुश्मन नहीं करार दे रखा है ? क्या हम अपने दैनिक क्रियाकलापों में अपनी कौम के स्वर्णिम इतिहास पर कालिख पोतने जैसा दुस्साहस नही कर रहे ?

हम क्यों अपनी धूर विरोधी जाति के आन्दोलनो को और उनके अपने नेताओ के जाति विरोधी होने पर भरे चौराहों पर नंगा कर दोडाने वाला साहस नही बटौर पाते ? असल में वर्ग संघर्ष के जिस सिलसिले को अंग्रेजों ने जाट सभाओ के रूप में शुरू किया था उसे ही वर्तमान भारत की राजनीती आगे बढ़ा रही है, जिसका परिणाम "जाट आरक्षण" भारतीय राजनीती में सबसे अहम् मोड़ था और सामाजिक तौर पर भी ! एक राष्ट्रवादी राजपूत को सांकेतिक सामंतवाद की लावारिस संतान की झूंठी छवि में फंसाकर भारत के भूगोल से मिटाने का दुस्साहस किया गया ! हमारे नामर्द नेताओ की चुप्पी ने इस दुस्साहस को हवा देने का कुत्सिक कार्य किया है, वे तिल और तिलों की धार देखने में अस्त व्यस्त रहे और ये अप्रत्याशित कारवां गुजरता चला गया और हम गुब्बार देखते रह गये ! मेरे ख्याल से "जाट आरक्षण" का अरुणोदय राजपूत को कमजोर और कमजोर करने की दुष्ट चेष्ठा का ही परिणाम रहा था मित्रो, इसमें कत्तई कोई दौराय नजर नहीं आती इसके पीछे हमारी जाति के लिए छुपा दुराभाव इस आन्दोलन का प्रेरणापुंज प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष से निहित रहा था !

मैं जिस शहर में रहता हूँ वहा अक्सर जाट समुदाय के लोगो को ये कहते, सुनते देखा जाता है "जितना लगान तुम्हारे पूर्वजो ने हमसे वसूला था, वो हम ब्याज सहित वसूलेंगे" यदपि ये चंद चव्व्नों की घटियाँ मानसिकता भर रहा है ! हमारे अब तलक के पथ प्रदर्शको ने समाज से बाहर अन्य जातियों में पैदा हुए किसी भी प्रगतिशील आन्दोलनों को समझने की चेष्ठा तक नहीं की। हम कर भी नहीं सकते क्योंकि राणा सांगा बाबर की बारूद को नहीं समझ सके, तो हमारी तो कुव्वत ही क्या है ? हम भी तो उसी वंश के जीवित जीवाश्म भर ही तो है ! हमारे नेता घोड़े भाग जाने के बाद घुडसाल के ताले ठोंकने की रश्मे निभाने में व्यस्त है। 

और हम अपने समाज की राजनैतिक जंजीरे तोड़ने के लिए व्याकुल और अस्त व्यस्त है।  दुर्भाग्य से मेरा नौजवान समाज बंधू अपनी कौम की बेइज्जती कर मोदी के झमेलो में मस्त है .......अफ़सोस ...!!!
लेखक : उम्मेद सिंह करीरी
प्रदेश अध्यक्ष : राजपूत युवा परिषद, राजस्थान
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